भगवान राम की मृत्यु की जानकारी मुख्य रूप से हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथ रामायण में मिलती है। भगवान राम की मृत्यु का वर्णन उनके अयोध्या से अयोध्या वापसी (अयोध्या रामायण) के अंतिम अध्यायों में किया गया है। इसमें बताया गया है कि भगवान राम ने माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के बाद अयोध्या लौटने के बाद अयोध्या में राज्य किया।
एक दिन, भगवान राम ने सूतिक्ष्णा की शिकायत पर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में भगवान राम ने अपने अनुयायियों के साथ शास्त्रों के अनुसार यज्ञ की प्रक्रिया आगे बढ़ाई। यज्ञ के दौरान, घोड़ों को मुक्त किया गया और उन्हें दौड़ाया गया ताकि वे अपने मालिक के पदचारी धन्य किये जा सकें। इसके पश्चात, भगवान राम ने यज्ञ का अनुष्ठान समाप्त किया।
इसके बाद, भगवान राम ने अपने शरीर को समुद्र में समाप्त कर दिया और अपनी अवतार अवस्था को समाप्त करते हुए अपने दिव्य स्वरूप में विश्राम प्राप्त किया। इस घटना को 'प्रयागराज की तीर्थयात्रा' के रूप में जाना जाता है, जिसमें भगवान राम ने अपनी दिव्य स्वरूप को प्रकट किया।
भगवान राम की मृत्यु का वर्णन विभिन्न रामायण में भिन्न-भिन्न रूपों में किया गया है, लेकिन मुख्यतः उनका विश्राम प्राप्त करना और अपने दिव्य स्वरूप में विलीन हो जाना इन सभी कथाओं में समान रूप से उजागर होता है।
धार्मिक दृष्टि से, भगवान राम की मृत्यु को उनके अन्तिम लीला के रूप में माना जाता है, जिसमें वे अपने अवतार की समाप्ति करते हैं और अपनी दिव्यता में लौट जाते हैं।
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