महाभारत का युद्ध शुरू होने ही वाला था जब अर्जुन श्री कृष्ण के साथ युद्धभूमि में पहुंचे। अर्जुन ने श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले जाया जाए। युद्धभूमि में अपने गुरु और भाइयों को देखकर अर्जुन असमंजस में पड़ गए कि वे अपने ही प्रियजनों पर शस्त्र कैसे उठा सकते हैं। उनकी आंखें चिंता और आत्मग्लानि से झुक गईं। तभी श्री कृष्ण ने उन्हें भगवद गीता का महान ज्ञान दिया।
श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि इस सृष्टि में जो कुछ भी है, वह सब कृष्ण ही हैं और यह सम्पूर्ण सृष्टि उन्हीं का ही एक अंश है। अर्जुन ने श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि वह उनके विराट रूप का दर्शन करना चाहते हैं। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने महाविष्णु रूप के दर्शन दिए। यह रूप अनेक मुखों, नेत्रों और दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त था, जिसका प्रकाश हजारों सूर्यों के उदय जैसा था। यह विराट रूप इस बात का प्रतीक था कि यह पृथ्वी, प्रकृति, सूरज, चंद्रमा, नक्षत्र और सभी जीव-जंतु महाविष्णु से ही उत्पन्न हुए हैं और मृत्यु के बाद महाविष्णु में ही समा जाते हैं।
हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सर्वोच्च त्रिमूर्ति माना गया है। ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता, विष्णु पालनकर्ता और महेश विनाशक हैं। विष्णु पुराण और गरुड़ पुराण में विष्णु जी को विभिन्न रूपों में दर्शाया गया है, जिसमें महाविष्णु को सर्वोच्च माना गया है। महाविष्णु वह हैं जिन्होंने सृष्टि की रचना की और ब्रह्मा जी को उत्पन्न किया, इसलिए उन्हें नारायण भी कहा जाता है। नारायण का अर्थ होता है, "नर" यानी मानव और "अयान" यानी वह पात्र जिसमें सभी मानव वास करते हैं।
भगवान विष्णु धर्म का पालन करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर पृथ्वी पर अवतार लेकर राक्षसों और बुराइयों से लड़ते हैं। उनके सुंदर नीले रंग, चार भुजाओं और शेषनाग पर विराजमान रूप को देखकर भक्त मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनकी चार भुजाओं में सुदर्शन चक्र, कमल का फूल, शंख और गदा होते हैं, जिनमें से प्रत्येक का विशेष महत्व है। भगवान विष्णु के शेषनाग पर विराजमान होने का अर्थ है कि वे अनंत काल और समय से परे हैं। शेषनाग के अनेक फन भगवान विष्णु की कामनाओं पर विजय को दर्शाते हैं।
विष्णु जी के अवतार धरती पर धर्म की रक्षा के लिए होते हैं। उनके नौ अवतार अब तक हो चुके हैं और दसवां अवतार कल्कि के रूप में कलियुग के अंत में होगा। हर अवतार मानवता को दिशा देने और बुराइयों से लड़ने के लिए होता है। विष्णु जी के अवतारों का गहरा अर्थ है, जैसे मत्स्य अवतार मछली के रूप में ज्ञान के विस्तार का प्रतीक है। कुर्म अवतार आत्म-खोज का प्रतीक है। वराह अवतार बुराइयों पर विजय पाने का प्रतीक है। नरसिंह अवतार दुष्टता का नाश करने और धर्म की स्थापना का प्रतीक है।
कलियुग के अंत में जब पाप का बोझ बढ़ेगा, तब भगवान विष्णु अपने अंतिम अवतार कल्कि के रूप में प्रकट होंगे। वे देवदत्त नामक सफेद घोड़े पर सवार होकर हाथ में अग्निस्वरूप तलवार लिए बुराइयों का संहार करेंगे।
भगवान विष्णु के अवतार मानव जाति के इवोल्यूशन (विकास) को भी दर्शाते हैं। मत्स्य अवतार से लेकर आधुनिक युग के श्री कृष्ण तक, विष्णु जी के अवतार हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं और सीखों का बोध कराते हैं।
भगवान विष्णु की महिमा और उनकी लीलाएं अनंत हैं। उनके चार धाम उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में द्वारका हैं। इन चार धामों की यात्रा को तीर्थयात्रा कहा जाता है और इसे मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु इन चारों धामों में वास करते हैं।
भगवान विष्णु की महिमा और उनके अवतारों की कहानियां इतनी विस्तृत हैं कि उन्हें एक ही बार में समेट पाना मुश्किल है। यदि आप विष्णु जी से जुड़ी और कहानियां जानना चाहते हैं, तो हमें कमेंट करके बताइए।
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